• 38
  • 1 minute read

यादवों को ही धार्मिक षडयंत्र का शिकार क्यों बनाया जाता है?

यादवों को ही धार्मिक षडयंत्र का शिकार क्यों बनाया जाता है?

              आजकल हिन्दू धर्म के छ: हजार जातियों में सिर्फ यादव जाति को ही महिमा मंडित करते हुए कथावाचकों या धर्म के ठेकेदारों से खूब बखान कराया जा रहा है। उच्च कोटि का पवित्र वंश है। इस वंश में पूरे विश्व को ज्ञान-विज्ञान देने वाले भगवान श्रीकृष्ण पैदा हुए हैं। इसमें पैदा होना गर्व की बात है। लेकिन यह कभी नहीं कहता है कि यादव जाति ब्राह्मण से उच्च है। लेकिन वही कथावाचक यह भी कहता है कि भगवान मंत्र के अधीन है और मंत्र ब्राह्मण के अधीन है, इसलिए ब्राह्मण भगवान से भी उच्च है। इस को जन-मानस में सावित करने के लिए ब्राह्मण अपना पैर भगवान के सर पर रख कर अपना चरण धुलवाता है और फिर उस चरणामृत से भगवान का जलाभिषेक करवाता है।
एक समय था कि ब्राह्मण अपने सामने यादवों को खाट पर बैठने तक नहीं बर्दाश्त कर सकता था, शिक्षा तक ग्रहण नहीं करने दिया। गीता तक को छूने नहीं देता था, आज कुटिल बखान कर रहा है, क्यों,? इस जालसाजी को समझना होगा।
शूद्रों की दूसरी जातियों से आप की जाति को उच्च बनाना आप को अंधकार में ढकेलना है, ब्राह्मणवाद का पोषक बनाना है। जिस दिन ब्राह्मण यह कहना शुरू कर दे कि यादव या शूद्र लोग ब्राह्मण से उच्च और बुद्धिमान होते हैं, उस दिन से समझना कि, ब्राह्मण आप का हितैषी हो रहा है, अन्यथा नहीं।
काल्पनिक कहावत है , इतिहास नहीं, कि भगवान श्रीकृष्ण यादव वंशज में पैदा हुए थे और गीता के अनुसार अपना वचन-
(यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: ————- गीता श्लोक 4(7-8))
निभाते हुए हमारे जैसे असुर भिमटों के अधर्म-विरोधी अभियान को खत्म करने के लिए, मथुरा वृन्दावन से बहुत दूर, बिहार के बौद्ध भूमि नालंदा जिला, मदनचक गांव की पवित्र यादव भूमि की जमीन फाड़कर इसी सप्ताह में प्रकट हुए है। पूजा अर्चना शुरू हो गई है। अब वहां मंदिर भी बनेगा, लेकिन पुजारी ब्राह्मण ही रहेगा अन्यथा उत्तर प्रदेश के इटावा की घटना फिर बिहार में भी ताजा हो जाएगी।
लेकिन अफशोस और दुर्भाग्य यह है कि, भारतीय नागरिक, यहां तक कि यादव भी भगवान की पैदावार वाली पवित्र भूमि छोड़कर अपने बच्चों को अमेरिका जैसे मलिच्छ देश में पैदा कराने के लिए उसी भगवान से विनती और सरकारी जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं।
चार दिसंबर 2024 को मैंने बोल -85 यूट्यूब चैनल पर इन्टरव्यू में श्रीकृष्ण के वजूद को नकारते हुए यहां तक कहा था कि जमीन की खुदाई या पुरातत्व विभाग सर्वे में श्रीकृष्ण के वजूद का प्रमाण कहीं नहीं मिलता है, सिर्फ बौद्धों का ही मिलता है। काफी हंगामा मचा हुआ है। भगवान हमारे है फिर भी पता नहीं क्यों मनुवादियों को ही ज्यादा मिर्ची लगी हुई है ?
फिर भी भगवान तो कण-कण में है, मेरे इन्टरव्यू को सुने और बिहार में प्रकट हो गए।
इस वीडियो को मैंने भी देखा है । गौतम बुद्ध की पूरे विश्व में एक अलग पहचान से लोग जानते है। उनके कानों और घुंघराले बालों की आकृति से जो पत्थरों की नक्काशी से बनाई गई है। गौतम बुद्ध की पत्थरों पर सैकड़ों तरह की आकृति बौद्ध देश के संग्रहालयों में रखी गई है। मैंने कुछ शोसल मीडिया पर ग्वालों की तरह गाय का दूध निकालते देखा है, बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण की तरह बांसुरी बजाते भी देखा है। आज के देवी देवता भगवान के फोटो और उससे मिलते जुलते क्रिया कलापों को बौद्ध काल के पत्थरों की नक्काशी में मिलता है। यादव जी की जमीन पर जो पत्थर की मूर्ति मिली है, वह भी गौतम बुद्ध से भी मिलती जुलती है। अंतर यह है कि इस मूर्ति को पालिश किया हुआ लगता और नीचे के पहनावे धोती को कलर कर दिया गया है , इसलिए सिर्फ 500 साल पुरानी जमीन में मिली बताई जा रही है। दो दिन के बाद जब सवाल खड़े किए गए तो , अब श्रीकृष्ण भगवान को मास्क पहना दिया गया है और कहा जा रहा है कि जमीन से बाहर आने पर सांस लेने में तकलीफ़ हो रही है। आश्चर्य है कि पुरातत्व विभाग अभी तक इसको अपने कब्जे में क्यों नहीं लिया है? पाखंडी पब्लिक ही तरह तरह की अफवाहें फैला रही है और सरकार पाखंड और अंधविश्वास फैलाने में सहयोग कर रही है।
मैं बता दूं कि मैंने भी पाली भाषा यानी ब्राह्मी लिपि का थोड़ा बहुत ज्ञान हासिल कर लिया है। इसा पूर्व 3500 से 600 इस्वी तक हड़प्पा सभ्यता में जो भी लिखा मिला है उसे आजतक कोई पढ़ नहीं सका है। अभी भी रिसर्च चालू है, इसलिए इस सभ्यता का पूरा विवरण नहीं मिलता है। ईसा पूर्व 600 इस्वी से एक इस्वी तक बौद्ध काल माना जाता है। सम्राट अशोक का शासनकाल भी इसी समय माना जाता है। पूरे विश्व में इसकी ख्याति फैली हुई थी। पाली भाषा यानी ब्राह्मी लिपि का आविष्कार इसी पीरियड में हुआ था, जो कागज और पन्नों पर नहीं , सिर्फ पत्थरों पर नक्काशी करके लिखे पढ़ें जाते थे। मैंने सम्राट अशोक के 7-8 पत्थरों पर लिखे शिलालेखों के द्वारा शासनादेश को भी पढ़ा और समझा भी है। क्लास में लेक्चर के समय मुझे कुछ जाति और धर्म पर डाउट हुआ, तो मैंने खुद प्राध्यापक से सवाल पूछा था कि,
सर जी शिलालेखों से तो, आज की जाती और धर्म का जिक्र तो कहीं भी नहीं मिलता है, फिर सम्राट अशोक को मौर्या बंशी या मौर्या जाति का कैसे मान लिया जाता है। उनका कहना था कि उस समयकाल में कोई जाति या धर्म नहीं था। सम्राट अशोक मौर्य जाति के नहीं, बल्कि आज के सभी मूलनिवासी समाज के बंशज थे। कृषक, पशुपालन या कारीगरों की अलग-अलग श्रेणी पत्थरों की खुदाई में मिलती हैं।
इसके बाद कई राजा महाराजा का वंशज चला। विदेशी यात्रियों के भारत भ्रमण उनकी खोजबीन, उनकी किताबों, संग्रहालय को खंगालने से पता चलता है कि करीब 600- 700 इस्वी के आसपास कुछ जातियों की उत्पत्ति का प्रमाण मिलता है। सबसे पहले राजा के परिवार वालों को राजपूत उपाधि नाम से पुकारा जाने लगा। इसी पीरियड में संस्कृत हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति होती है। 800 इस्वी के आसपास कागज पर प्रिंट करने या लिखने पढ़ने का प्रमाण चीन से मिलता है।
1931 में भारतीय जनगणना के समय ब्राह्मणों ने अंग्रेजों से मिलकर बड़े शातिराना ढंग से, हजारों जातियों का निर्माण अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम देकर किया। सच में देखा जाय तो हिन्दू धर्म में सेवा करने के नाम पर 50 से उपर जातियां नहीं होनी चाहिए। जैसे यादव, कुर्मी, कोईरी, धोबी आदि को हर राज्य में एक नाम न देकर, सभी को सैकड़ों जाति में बांट दिया। उसे लिखित दस्तावेजी करवाकर शूद्रों को हजारों टुकड़ों में विभाजित करवा दिया। ए जाति प्रथा बहुत पुरानी नहीं है। बहुत सी जातियां तो 1931के आस-पास पैदा की गई है। लेकिन इसकी उच्चता और नीचता, छुआ-छूत का प्रचार प्रसार बहुत ही सुनियोजित तरीके से किया गया। भारत में सैकड़ों साल तक पूरी ऊर्जा इसी काम पर लगाई गई। सभी गांवों में स्कूल और शौचालय का निर्माण नहीं हुआ, लेकिन मंदिर हर गांव में मिलेगा। हम सभी शूद्र करीब 700 इस्वी पहले बौद्ध ही थे। इसके बाद का इतिहास बहुत उठा-पटक का है और सभी की जानकारी में भी है। यह बहुत अलग विषय है इस पर ज्यादा लिखना उचित नहीं समझता हूं।
अब आप को ब्राह्मणी षडयंत्र समझ में आ गया होगा कि, ब्राह्मण अपने देवी देवता भगवान या उनके धर्म-कर्म शास्त्र, पुराण, गीता महाभारत सभी 5000 साल पुराने क्यों बताता है? क्यों कि 5000 साल के पहले के इतिहास की जानकारी न होने कारण उस पिरियड को अज्ञात काल माना जाता है। कहावत इन्हीं पर है, अंधेरे में तीर चलाना और सफलता की डींग हांकना।
अब थोड़ा 5000 साल पहले के अज्ञात काल के ब्राह्मणी इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं।
महाभारत काल में कृष्ण सुदामा की दोस्ती होना, यादव जाति को महिमा मंडित करते हुए उस जाति में भगवान पैदा करना, तथाकथित भगवान श्रीकृष्ण या राजा से भिखारी ब्राह्मण का पैर धुलवाना, जुआ खेलना, बीबी को जुआ में हारना, बहन बेटी को निर्वस्त्र करके सभी के सामने इज्जत लूटना, अबला निसहाय बालिकाओं के कपड़े चुराते हुए छेड़खानी करना, जबरदस्ती किडनैप करके रखैल बना लेना, एक ही औरत को उसकी अनुमति के बिना पांच-पांच पति बना देना, यानी सामुहिक बलात्कार करना -करवाना, कुंवारी रहते हुए एक बालिका को उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे मां बना देना और फिर उस मां बेटे को जिन्दगी भर कलंकित और अपमानित करना, भाई भाई में दुश्मनी पैदा कराकर एक दूसरे की संपत्ति हड़पना, उन्हें आपस में लड़ाना- मरवाना और फिर पूरी कौम को नरसंहार कराते हुए मिट्टी में मिला देना। अरे यही तो आज के भारत की भी संस्कृति और सभ्यता है!
आश्चर्य है कि ऐसे कुछ काम भगवान श्रीकृष्ण खुद करते थे,या किसी और से करवाते थे, या उनके सामने उनकी अनुमति से हो रहा था।
भारतीय इतिहास को पढ़ने और समझने पर दिमाग में कन्फ्यूजन पैदा होता है कि हमलोग को भगवान श्रीकृष्ण से उपदेश मिला है या हम लोगों ने महाभारत काल के श्रीकृष्ण भगवान को ज्ञान दिया है।
यादव या सभी शूद्र समाज के भाइयों 700 इस्वी से पहले यानी सिर्फ 1500 साल पहले आप की कोई जाति नहीं थी। हम सभी बौद्ध थे। इसलिए कोई जाति से पैदाइशी पराक्रमी, उच्च, महान, बुद्धिमान नहीं होता है। उसमें आप का वश भी नहीं है। जो ज्यादा है, संगठित है, शिक्षित हैं, एक दूसरे के सहयोगी है , वही सफल है, तो उन्हें लगता है कि यह सफलता हमारी जाति के कारण है, यही ग़लत अवधारणा है।
*जाति से सबसे निचले पायदान पर महार जाति के बाबा साहेब अम्बेडकर सबसे बड़े भारतीय विद्वान पैदा हुए। अब-तक का सबसे साहसी, पराक्रमी, बहादुर, लड़ाकू की श्रेणी में महारों का ही भारतीय इतिहास में नाम दर्ज है। किसी भारतीय का नहीं कहना है। अंग्रेजी हुकूमत का लिखित दस्तावेज है। सिर्फ 500 महार बटालियन ने 28000 पेशवाई सैनिकों को हराकर पेशवाई साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया था। इतने ज्यादा प्रभावित थे कि उनकी तारीफ करने में अपनी तौहीन नहीं समझे। बिना किसी डिमांड के उन वीरों की याद में विजय स्तंभ बनवा दिया। यदि यह प्रमाण नहीं होता तो आज कोई मानने को तैयार नहीं होता।
मेरा अनुरोध है कि अपनी-अपनी जाति की उच्चता का घमंड त्यागिए, जाति की पूरे देश में एकता भाईचारा सही है लेकिन यदि बड़े दुश्मन से जीतना है तो और संगठित हो जाइए, और ताकतवर बनिए, दूसरे जाति को भी अपना भाई समझिए, शादी विवाह, खान-पान, एक दूसरी जातियों से करिए। आप को आप के दुश्मन ने, आप के ऊपर राज करने के लिए,आप को टुकड़े-टुकड़े में बांटा है । अभी भी वहीं षडयंत्र चल रहा है।
वास्तविकता से साक्षात्कार कराना मेरा फ़र्ज़ है, अमल तो आप को ही करना है। धन्यवाद।
गूगल @ गर्व से कहो हम शूद्र हैं
आप के समान दर्द का हमदर्द साथी।
गूगल @ शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

0Shares

Related post

“रुपया डॉलर विनिमय: वर्गीय परिणाम आणि परकीय गुंतवणूक”

“रुपया डॉलर विनिमय: वर्गीय परिणाम आणि परकीय गुंतवणूक”

रुपया डॉलर विनिमय: वर्गीय परिणाम आणि परकीय गुंतवणूक  रुपया डॉलर विनिमयाच्या चर्चांमध्ये वर्गीय आयाम टेबलावर आणण्याची…
स्मार्टफोन, टीव्ही, बाजारपेठ: बदललेल्या जीवनशैलीवर लोकांचे मिश्रित विचार

स्मार्टफोन, टीव्ही, बाजारपेठ: बदललेल्या जीवनशैलीवर लोकांचे मिश्रित विचार

स्मार्टफोन, टीव्ही, बाजारपेठ: बदललेल्या जीवनशैलीवर लोकांचे मिश्रित विचार ती लहानपणची बाहुली किंवा विदूषक आठवतोय ? कसाही…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *