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संविधान सभा के सभी सदस्य देश के प्रतिनिधी थे, अकेले बी. एन. राव ब्रिटिश के एजेंट थे….!
3waysmediadmin
February 2, 2024
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जम्मू काश्मीर की आज जो हालात है, उसकी पुरी जिम्मेदारी ब्रिटिश सरकार के एजेंट बी. एन. राव की है.....!
भारतीय सिव्हिल सेवा की परिक्षा उत्तीर्ण होने के बाद 1909 से 1953 तक बी. एन. राव ब्रिटिश सरकार के विश्वासू नोकर रहे. देश की आजादी के पूर्व संध्या के समय 1944 से 1945 मे बी. एन. राव जम्मू काश्मीर के दिवान (प्रधानमंत्री ) थे. ये पद उस वक्त ब्रिटिश सरकार के अधीन था. ब्रिटिश चाहते थे, जम्मू काश्मीर मे राजनैतिक तणाव पैदा हो, और यह काम बी. एन. रावने राजा हरिसिंग के साथ मिलकर सफलतापूर्वक किया भी. जम्मू काश्मीर मे आज जो तणाव है, उसकी निव यही समय मे डाली गयी है. जम्मू काश्मीर भारतीय संघ राज्य का हिस्सा बनना चाहिए, उसके लिये अब्दुला के नेतृत्व मे जो दल काम कर रहा था. उसका विरोध करने का काम बी. एन. राव कर रहे थे. उसी वक्त देश मे भारतीय संघ राज्य का संविधान बनाने की बात भी चल रही थी. कॅबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा का गठन करने का निर्णय लिया गया, और 6 डिसेंबर 1946 मे संविधान सभा की स्थापना भी हो गयी. निर्वाचित और आंशिक रूप से मनोनीत जो भी सदस्य संविधान सभा मे थे, उसमे बी. एन. राव कही नहीं थे. केवल ब्रिटिश सरकार के इमानदार और विश्वासू प्रतिनिधी या नोकरशहा के रूप मे उनकी उपलब्धि संविधान निर्मिती मे रही है.
संविधान सभा की स्थापना होने के वक्त बी. एन. राव ब्रिटिश सरकार के गव्हर्नर सचिवालय मे रिफॉर्म अधिकारी के पद कार्यरत थे. और खुद्द राव ने सरकार से निवेदन करके संविधान निर्मिती के कार्य की जिम्मेदारी देने की मांग की. अपने निवेदन मे बी. एन. रावने तत्कालिन व्हायसराय लॉर्ड वेवेल को लिखा है…. अगर मुझे मोका मिला तो मैं भारतीय संघ राज्य का संवैधानिक ढाचा बनाने मे अपना योगदान दे सकता हु…! और व्हायसराय लॉर्ड वेवेल ने राव को जुलाई 1946 को संविधान सभा का कानुनी सलाहकार नियुक्त किया. ब्रिटिश सरकार के एक नोकर के रूप मे संविधान के कार्य मे बी. एन. राव की एन्ट्री हुई है. ये नियुक्ती राष्ट्रभक्ती से प्रेरित नहीं थी. गुलामी मानसिकता का प्रतिनिधित्व कर रही थी. ब्रिटिश सरकार के एजेंट के रूप मे बी. एन राव की एन्ट्री संविधान सभा मे थी..

संविधान सभा या संविधान मसुदा समिती के सदस्य नही होने के कारण राव संविधान सभा की एक ही बैठंक मे उपस्थित नहीं रहे. उन्हे वो अधिकार भी नहीं था. पर उन्होंने संविधान सभा को एक कच्चा ड्राफ्ट दे दिया. जो दुनिया भर के देशो के संविधान का अध्ययन करके बनाया था. उसका स्वीकार भी किया गया. संविधान सभा के मसुदा समिती के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सबका साथ चाहते थे. रावने दिया कच्चा ड्राफ्ट का भी विचार डॉ. आंबेडकरने किया और संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण मे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने उसके लिये राव का आभार भी माना है. और राव ने उसी वक्त कहा है की, भारतीय संघ राज्य का संविधान डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरने बहुत मेहनत से लिखा है. संविधान निर्मिती का पुरा श्रेय डॉ. आंबेडकर को देते हुई बी. एन. रावने आगे कहा है….. संविधान मसुदा समिती के सात सदस्य मे से आधे सदस्य गैर हजर रहने के बाद भी डॉ. आंबेडकरने समय पर भारतीय संघ राज्य का संविधान बनाया है.
संविधान निर्माण के समय मे भी बी. एन. राव ब्रिटिश सरकार के नोकर थे…..!
संविधान सभा का गठन, फिर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के नेतृत्व और अध्यक्षता मे संविधान मसुदा समिती का गठन, संविधान सभा की पहिली बैठक और संविधान लागू होने के बीच 2 साल 11 महिने और 18 दिन का समय लगा. इस बीच संविधान सभा की 11बैठके हुंई और मसुदा समितीने बनाये संविधान के प्रारूप पर 165 दिन चर्चा हुई. उस वक्त बी. एन. राव देश मे ही नहीं थे. ब्रिटिश सरकार के मेहरबानी से वो आंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश बनकर विदेश मे थे.
ब्रिटिश सरकार के विश्वासपात्र नोकर के श्रेणी मे राव नंबर एक पर थे. राव जब से ब्रिटिश सरकार के सेवा मे थे, वो सारा समय देश के आजादी के आंदोलन का रहा है. जालियनवाला बाग हत्याकांड, भगतसिंग, राजगुरू और बटुकेश्वर दत्त की फाशी, आजादी के शिपाईयो पर दमन ये सारी घटनाये हो रही थी. और बी. एन. राव सरकार की मदत कर रहे थे. सावरकर पेन्शन लेकर, तो राव वेतन लेकरं सरकार को सेवा दे रहे थे. एक हिसाब से यह भी देश विरोधी कार्य था. ब्राह्मण या उच्च जाती का चरित्र हमेशा रहा है.
ब्रिटिश सत्ता के खिलाप देश का हर नागरिक महात्मा गांधी के नेतृत्व मे आजादी के आंदोलन का हिस्सा बन रहा था. उस वक्त भी राष्ट्रीय समलैंगिक संघ, विश्वहिंदु परिषद, सावरकर की गँग ब्रिटिश सरकार को हर तरह की मदत कर रही थी. सरकार के खिलाप उठनेवाली आवाज को दमन से कैसे रोका जाय उसकी सल्लाह दे रहे थे. सलाहकार बने थे. उस वक्त के हिंदुत्ववादी नेता जो ब्राह्मण जाती से आते थे, जैसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ब्रिटिश सरकार के सबसे बडे सलाहकार थे. महात्मा गांधी के नेतृत्व मे सुरू ” भारत छोडो “आंदोलन और ब्रिटिश ” चले जाव ” के आंदोलन को कैसे चिरडा जाय, उसकी सलाह श्यामा प्रसाद मुखर्जी बाहर से दे रहे थे, तो ब्रिटिश के सेवा मे रहकर राव के जैसे नोकरशहा सरकार मे रहकर उसका अंमल कर रहे थे.
डॉ . आंबेडकर के पास संविधान निर्मिती की जिम्मेदारी आते ही धर्मांध शक्तीया परेशान हुई थी…..!
गुलामी का दौर खतम हो रहा था. देश को आजादी दस्तक दे रही थी. महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व मे आजाद भारत मे लोकतंत्र व्यवस्था प्रस्थापित होने के संकेत भी स्पष्ट रूप से दिख रहे थे. ऐसे मे ब्राह्मणी धर्म व्यवस्था को खतरा भी पैदा हुआ था. और ब्राह्मणी व्यवस्था के ठेकेदार उसे देखकर परेशान भी थे. अगर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर संविधान सभा मे आते है, तो हिंदू राष्ट्र और ब्राह्मणी वर्चस्व खतम हो जायेगा. ये भी स्पष्ट हो गया था. इसलिये डॉ. आंबेडकर के लिये संविधान सभा के दरवाजे बंद करने का पुरा प्रयास भी ये शक्तीयोंने किया था. पर उन्हे कामयाबी नहीं मिली और डॉ. आंबेडकर संविधान सभा के केवल हिस्सा नहीं बने बल्की मसुदा समिती के अध्यक्ष भी बने. हिंदुत्ववादी शक्तीयोंके के लिये ये खतरे की घंटी थी. ये खतरा टालने का एक प्रयास था, बी. एन. राव को संविधान सभा सलाहकार नियुक्त करना.
संविधान सभा का सलाहकार नियुक्त होते ही बी. एन राव ने एक २८३ अनुच्छेद का कच्चा ड्राफ्ट भी दे दिया. उसका भी सन्मान के साथ डॉ. आंबेडकरने स्वीकार किया. पर संविधान का मूल गाभा सामाजिक न्याय, समानता और धर्म निरपेक्ष तत्व होने चाहि, यह डॉ. आंबेडकरने ठाण लिया था. और हुआ भी ऐसा ही. हिंदुत्ववादी शक्तीयों का आखरी प्रयास भी डॉ. आंबेडकर ने फस्त किया. देश की धरातल से धर्मांध व्यवस्था को खतम करने का और उसे गाडने का काम डॉ. आंबेडकरने अथक परिश्रम से किया. बी. एन. हिंदुत्ववादीयो का का आखरी हत्यार था. वो भी काम नहीं कर सकता, ये जब स्पष्ट हो गया, तब जा के नथुराम गोडसे के आड मे महात्मा गांधी की हत्या की गयी. इस हत्या के बाद देश मे अराजकता पैदा होगी और देश को मजबूत करने का डॉ. आंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू का सपना तूट जायेगा, यह रणनिती उसके पिछे थी, पर ना डॉ. आंबेडकर पिछे हाटे ना पंडित जवाहरलाल नेहरू पिछे हटे.

डॉ. आंबेडकर के नॉलेज का लोहा दुनिया तबतक मान चुकी थी. इतना बडा विद्वान एक दिन भी ब्रिटिश सरकार का नोकर नहीं बना. बी. एन. राव की पुरी जिंदगी ब्रिटिश सरकार की सेवा करने मे गयी. सावरकर पेन्शन लेकर सेवा दे रहे थे. राष्ट्रीय समलैंगिक संघ, विश्व हिंदू परिषद और बाकी हिंदुत्ववादी नेता और संघटन ब्रिटिश सरकार के तुकडोपर पल रहे थे. पर अठरा विश्व दारिद्री होने के बावजूद डॉ. आंबेडकरने एक दिन भी गुलामी नहीं की. वो देश को मजबूत बनाते रहे.
देश को तोडणे का, फिर से गुलाम बनाने का काम समलैंगिक संघ और उसका परिवार कर रहा है. पर डॉ. आंबेडकर का संविधान और लोकतंत्र उन्हे कामयाब होने नहीं दे रहा है. यह संविधान और लोकतंत्र की ताकद है. और डॉ. आंबेडकर के अथक मेहनत की भी ताकद है.
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राहुल गायकवाड,
प्रवक्ता, महासचिव समाजवादी पार्टी,
महाराष्ट्र प्रदेश
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