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मोदीजी जिस शिव का जप करते है ,उस शिव के भक्त शासक मिहिरकुलने ही नालंदा विश्व् विद्यालय को जलाया…!
नालंदा विश्व् विद्यालय : देश की गाथा और गौरव का इतिहास…!
“आग की लपेटो में किताबे भले ही जल जाए, लेकिन आग की लपेटे ज्ञान को नहीं जला सकती,” नालंदा विश्व् विद्यालय परिसर से 20 किलो मीटर दूरीपर परिसर विकास के कार्य का नरेंद्र मोदीने कुछ ही दिन पहिले उदघाटन किया. और उस वक्त बहुत ही दमदार बाते की. उसमे ये उक्त बात है.इतनी हिंमत वो कहा से लाये हे ? ये सवाल उनकी बाते सुनकर मन में खडा हो रहा है. पर मोदी केवल सच बोले नालंदा को लेकर सवाल तो पहिले से ही मन है, और पुरी दुनिया के मन में है. इस वक्त मोदीजीने बहुत सारी बाते की, जिसने भी भाषण लिखकर दिया, बहुत दमदार लिखकर दिया है. वो बोले… नालंदा केवल नाम नहीं है, अपनी पहचान है. एक सन्मान है, एक मूल्य है, एक मंत्र है, एक गाथा और गौरव है. और आगे कहा… नालंदा इस सत्य का उदघोस है की आग की लपटो में किताबे भले जल जाए, लेकिन आग की लपेटे ज्ञान को नहीं मिटा सकती, जला सकती. भारत वर्ष के प्रधानमंत्री के हैसियत से उनकी जबान से निकली ये पहिली सही और शोभादायक बात होगी. पर इतनी बडी बात करते समय ये भी बोलते की, गुफाओ जाकर में जिस कैलासपती शिव का जप करता हू, उसके ही भक्त हुन वंश के शासक मिहीरकुलने ये गौरव मिटाने का काम किया है. और हम उसकी निंदा करते. पर ये हिंम्मत आज भी मोदी के पास नहीं है. ये सत्य है.
बात तो यह भी है की, मोदीजी राम को लाये है. पर लाकर जिस जगह पर राम का बसेरा राम मंदिर के नाम से खडा कर रहे है, वहा जो खोदकाम हुआ उसमे बुद्ध की प्रतिमाये मिली. बुद्धकालीन अवशेष मिले. पुरी दुनियाने देखा. पर मोदीने लाये तो राम ही. इसलिए आग की लपेटे की और विरासत की बात करनी है, तो आधी, अधुरी नहीं करनी चाहिए. पुरी और पूर्णरूप से करनी पडेगी. देश के हिंदू मंदिरों की भी बात करेंगे तो जिस मंदिर को देखोंगे बुद्ध वहा नजर आते है. और यही देश दुनिया में अपना गौरव है, यही भारत वर्ष की विरासत है. इसलिए बात करनी है, तो पुरी बात करो. काम चलाऊ और धोका देनेवाली बात मत करो. आधी अधुरी, आधी सच बाते करनेवालों को ये दुनिया और इतिहास आवसरवादी, संधी साधू कहता है. यह भी याद रखो.
मोदी जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकले है, वो संघ पुरी झूठ की बुनियाद पर खडा है. इसलिए नालंदा…… देश की पहचान, सन्मान, मूल्य, मंत्र, गाथा, गौरव, विरासत, ये सारी बाते बोलना मोदी जैसे लोगों को छोडके सबके मुह से निकलती है, तो अच्छी लगती है. और मोदी जैसे लोग जब ये बात करते है, तो उसके पीछे का दर्द भी झलकता है. लोकसभा चुनाव में मिली हार छुपाने की कोशिश भी इसके पीछे हो सकती हैं. लोकसभा चुनाव के बाद मोदीजी बहुत डॅमेज हो चुके है. उनका अहंकारी चेहरा और मुखवटा दुनिया के सामने आ चुका है. खुद को बचाने के लिए और हम लोग मोदी से अलग है, ये दिखाने के लिए मोहन भागवत ने भी ऐसी ही बात करके मोदी का अहंकारी चेहरा देश – दुनिया के सामने लाने का काम किया है. ये डॅमेज कंट्रोल करने के लिए मोदीने नालंदा का सहारा लिया है.
इतिहास गवाह है, और पुरी दुनिया जानती है की, भारत भूमी बुद्ध की भूमी है. सम्राट अशोकने 84 हजार स्तूप बनवाये थे. उनके अवशेष मिल रहे है. उसका मतलब साफ है की, किसीने तो उसको बर्बाद किया है ? जैसे नालंदा और तक्षशीला को बर्बाद किया. कोन थे वो लोग, जिसने देश का ये गौरव और विरासत को बर्बाद किया ?, कोनशी विचारधारा थी, जो बुद्ध को नापसंत करती थी ? और उसे धुंडने निकलो तो मोदीजी जिस विचारधारा पे चल रहे है, जिस हिंदू राष्ट्र की बात कर रहे हैं, वो विचारधारा ही व्हिलेन के रूप में सामने आती है. 6वी शताब्दी में शिवभक्त शासक मिहीरकुलने नालंदा जलाया,पुरी दुनिया को विज्ञान, गणित, चिकित्सा, साहित्य, करुणा, अहिंसा का ज्ञान देनेवाली हजारो किताबे जलायी. शेकडो भिक्षु्यों को जान से मारा. विश्व् विद्यालय की दिवारे, खिडकीया, किताबे जलाकर ज्ञान को जलाने का/ मिटाने काम वही शक्तीयो ने किया जिसने मोदी जैसे देशद्रोही पैदा किये. इसलिए जितनी भी बाते मोदीने की, दिलपर पथर रखकर की होगी. मजबुरी है, इसलिए करनी भी पडती है.
अगर तक्षशीला, नालंदा की बात निकलती है, तो इस विश्व् विद्यालयों ने पुरी दुनिया को ज्ञान दिया है. नालंदा शब्द का मतलब ही ” ज्ञान देनेवाला ” है.जीने की कला शिखायी है. सुसंस्कृत बनाया है. बुद्ध की शरण में ही आधी दुनिया विकसित हो गयी है. बुद्धिस्ट देशो को देखो तो ये स्पष्टरूप से दिखता भी है. इसलिए मोदी जी विदेश में जाते हैं,तो ” में बुद्ध कि भूमी से आया हू,” ये बोलते थकते नहीं. आज वो नालंदा का विकास कर रहे है, पर 20 किलो मीटर दूर ये बात समज में नहीं आती. जिस इमारतों में ज्ञान का भंडार जलाया गया उधर से विकास कार्य सुरु क्यू नही किया गया ? यह सवाल भी मोदी के इस कृती से खडा हो गया है.
मोदी का वक्तीगत, सामाजिक, शैक्षणिक और राजकीय जीवन गडबड है. उनके चरित्र और चारित्र्य में विश्वासनीय कुछ भी नही. ये सब लोग जानते है. उनका बचपन विश्वासनीय नही,उनकी शिक्षा भी नही, चायवाली बात और शादी सब गडबड है. इतना ही नही राजनीति तो पुरी तरह से हिंसक है. इसलिए उनकी ” आग की लपेटे में किताबे भले ही जल जाए,लेकिन आग की लपेटे ज्ञान को नही जला सकती, इसलिए मोदीजी के जबान से निकली ये बात हजम नही हो सकती. और देश की गाथा, गौरव, मान, सन्मान ये शब्द उनके मुख से अच्छे भी नही लगते…!
– राहुल गायकवाड,
(महासचिव,समाजवादी पार्टी, महाराष्ट्र प्रदेश)