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मोदी के और इशारा करते अखिलेश यादवने पढाये ओम बिर्ला को पद की गरिमा के पाठ…!
संसद सत्र के पहिले दिन से राहुल गांधी और अखिलेश यादव के तिखे तेवर…
निष्पकता इस महान पद की महान जिम्मेदारी है, आप इस पदपर बैठे है, तो पद की गरिमा का भी ख्याल रखो. किसी और के इशारे पर सदन की कारवाई मत चलाओ. या निर्णय मत लो, ये इशारा सदन में अध्यक्ष चुने गये ओम बिर्ला को बधाई देते वक्त समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादवने दिया. पिछले पाच साल में ओम बिर्लाने पद की गरिमा से सदन की कारवाई नही चलायी, बल्की मोदी के इशारे से ही चलायी, ये बात समाजवादी नेता अखिलेश यादव स्पष्टरूप से कहना चाहते थे. अखिलेश यादव जब अपनी बात रख रहे थे, तब ओम बिर्ला और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे दिखने लायक थे. लज्जा उनके चेहरों से कोशिश करने के बाद भी नही छुप रही थी. ” अगर सडके खामोश रही, तो संसद आवारा बन जायेंगी,” ये इशारा महान समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहियाजीने दिया था. और पिछले दस साल में हुआ भी ऐसा ही. पाशवी बहुमत से अहंकारित मोदीजी पुरे दस साल सदन, संविधान, लोकतंत्र, विपक्ष और देश के गौरव का मजाक उडाते रहे. अपनी मर्जी से सदन चलाते रहे. और अध्यक्ष ओम बिर्लाने उनका साथ दिया.
2014 और 2019 में लोकसभा सदन में विपक्ष का नेता नही था. विपक्ष एकदम कमजोर था. देश का बिका हुआ मिडिया देश की जनता और विपक्ष के साथ नही था. बल्की मोदी की गुलामी कर रहा था. (आज भी करता है ).इस स्थिती में केवल संसद, संविधान या लोकतंत्र कमजोर नही हुआ देश भी कमजोर हुआ. विपक्ष की आवाज सडक से लेकर संसद तक दबाने का काम हुआ. सडकपर उतरकर आंदोलन करनेवाले आंदोलनकारी और संसद में आवाज उठानेवाले जन प्रतिनिधीयों के उपर कारवाई की गयी. राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता यही अध्यक्ष बिर्लाने मोदीजी के इशारे पर खतम की थी. और संसद से विपक्ष के दोनो सदनों के 143 सदस्यों की सदस्यता भी खतम की थी. 75 साल के संसदीय राजनीती में कभी भी ऐसा नही हुआ था. जो मोदीजीने किया. और अध्यक्ष के नाते ओम बिर्लाने उनको साथ दिया. ये बहुत दूर की और बिते हुये समय की बात नही. बस कुछ दिन पहिले की है. और देश जब अपने आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था, तब की है. इसलिए ये बहुत निंदनीय है. मोदी और बिर्ला के राजनैतिक जीवनपर लगा हुआ ये कलंक है. साफ करने का कोई भी रास्ता नही है. ये हमेशा केलिए लग गया है.
देश की संसद देश की जनता से बडी नही होती है .तो प्रधानमंत्री बडे कहा से होगे ? जनता संसद की और प्रधानमंत्री की भी मालिक होती है. इसलिए तो देश के पहिले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूने खुद को सेवक बताया था.यही नकल करने की कोशिश मोदीने की, खुद को सेवक बताया, चौकीदार भी घोषित किया. पर रवैय्या मात्र मालिक का था. इसे ही धोकेबाज व धोकेबाजी कहते है, और दस साल धोका देने का ही काम किया. तब जाकर जनता जाग गयी और मत के अधिकार से मोदी को औकात दिखायी. अब औकात में दिखायी दे रहे है. इस पोस्ट में 2019 का 2024 के फोटो है. जो अध्यक्ष नियुक्त होनेपर ओम बिर्ला को उनके आसन तक प्रधानमंत्री लेके गये. ये संसदीय परंपरा का हिस्सा भी है. लेकिन 2019 की मोदीं की बॉडी लँग्वेज देखो तो घमेंड दिखायी पडती है. इतने बडे पदपर रहनेवाले इन्सान में इतनी घमेंड नही होनी चाहिए. पर इन्सानियत का और मोदी का संबंध ही कब रहा है ?
राम मंदिर की राजनीती करके भाजप सत्तातक पोहच गयी. मंदिर और धर्म की राजनीतीने भाजप को सत्ता दिलायी. 2014 और 2019 में तो पुरा बहुमत दिया. पर इस दस वर्ष में देश की जनता को समज में आया की देश मोदी के हातों में सुरक्षित नही है. और लोकसभा का चुनाव आते आते जनताने भाजप और संघ का ” खेला” किया. बहुमत के अंक से भी कही दुरीपर रोक दिया. सत्ता से भूखे मोदीने एनडीए गठबंधन माध्यम से सत्ता स्थापन करने का दावा किया, और सत्ता भी स्थापन की. पर आज पिछले दस वर्ष में जो मनमानी मोदी – शहा जोडीने की, अब नही कर सकते. और मोदीं की हेकडी भी खतम हो गयी, ये उनकी बॉडी लँग्वेज से स्पष्ट दिखता है. अब मजबूत नही मजबूर प्रधानमंत्री बन गये है मोदी.
लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना चाहिए. मजबूत विपक्ष ही जनता की लढाई लढ सकता है. सरकारपर अंकुश लगा सकता है. इसलिए सरकार से भी जादा मजबूत विपक्ष की लोकतंत्र को जरुरत होती है. आज देश में दस साल के बाद मजबूत विपक्ष है. राहुल गांधी विपक्ष के नेता बने है. तो देश की तिसरी बडी शक्ती की रूप में उभरी समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादवने तो पहिले दिन से अपने तेवर दिखाने सुरु किया है. अब ये दोनों नेता सदन में पिछले दस साल का भी हिसाब मागेंगे. और वो देना भी पडेगा. पिछले 60 साल में देश में जो भी बना मोदीने उसे बेच दिया है. मोदी को अपना नोकर बनाकर अदानीने पुरा देश लुटा है. अब विपक्ष उसका हिसाब जरूर मागेंगा.
मोदी कमजोर और विपक्ष बहुत ही मजबूत और आक्रमक है, इसलिए गोदी मिडिया के तेवर भी बदलेंगे. मोदी और गोदी मिडिया का संबंध लेनदेनवाला रहा है. अब लेनदेनपर विपक्ष के माध्यम से कंट्रोल आयेंगा. और मिडिया हाऊस अपना पक्ष बदलेंगे. देश के पुरे मिडिया पे अदानी का कब्जा है. और अदानी विपक्ष के रडारपर. ये रिश्ता भी धीरेधीरे बदलेगा. ऐसी स्थिती में मोदी जैसा लाचार और कमजोर प्रधानमंत्री उसके पहिले ना देश में हुआ है ना आगे होगा. ये भी स्पष्ट रूप से सामने आ जायेगा.
मिडिया के साथ साथ संघ की समाजकंटक गँग भी मोदी काल मै बहुत सक्रिय हो गयी है. उसको सरकारी दामाद बनाया है. वो बेलगाम है. उसे किसी का भी डर नही. वो मॉम्ब लिंचिंग जैसे घटनायों को खुलेआम अंजाम दे रही है. खुलेआम अत्याचार और बलात्कार कर सकती हैं. दिन दहाडे राजधानी दिल्ली में जय श्रीराम का नारा देकर संविधान जला सकती है. वो गँग भी अब कंट्रोल में या कानून के दायरे में आ जायेगी. उसको अब आना ही है. ये सारी देश विरोधी शक्तीया हट जायेगी तो घमेंड करने के लिए मोदी के पास बचेगा क्या ? एक हतबल प्रधानमंत्री के रूप आज से वो दिखायी देंगे. और दे भी रहे है.
देश में आज तक 18 बार संसदीय चुनाव हुये, पर 17 बार हुये चुनाव और 18 वी लोकसभा के लिए हुये चुनाव में जमीन आसमान का फरक था. अपनी अपनी पसंद और विचारधारावाली राजनैतिक पार्टी को सत्तापर बिठाने के लिए 17 वी लोकसभा तक देश की जनताने वोट किया. 16 वी और 17 वी लोकसभा में भाजप को भारी बहुमत मिला, तो संसद में संविधान को आव्हान देना सुरु कर दिया. संसद में दिया गया जय श्रीराम का नारा संविधान विरोधी शक्तीयों का मंत्र बन गया. अत्याचारों के हात का हत्यार बन गया. जुल्म का मंत्र बन गया. तब जाकर देश की जनता जाग गयी और 18 वी लोकसभा के लिए जनताने पार्टीयों को सत्ता देने के लिए नही, बल्की संविधान और लोकतंत्र बचाने और मजबूत करने के लिए वोट दिये. संविधान, लोकतंत्र की रक्षा करनेवाले पार्टीयों को संसद में ताकद के साथ भेजा. तब जाकर नवनिर्वाचित हर संसद अपने हात में संविधान की प्रत लेकर अपने पद और कर्तव्य की शपथ ले रहा था. तब “जय संविधान “और ” जयभीम “के नारे लग रहे थे. अब देश का संविधान और लोकतंत्र मजबूत हातों मे सुरक्षित है, ये विश्वास पुरे विपक्षने संसद सत्र सुरु हॊते ही जनता को दिया है, और संघ, भाजप और मोदी को इशारा भी दिया है.
– राहुल गायकवाड,
(महासचिव, समाजवादी पार्टी, महाराष्ट्र प्रदेश)