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समताधिष्ट समाज व्यवस्था बदलने का प्रयास सांप्रदायिक शक्तीया मोदी के माध्यम से कर रही
3waysmediadmin
February 2, 2024
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तथागत बुद्ध और उनके धम्म विचारो को खतम करके ब्राह्मणी धर्म व्यवस्थाने पुष्पमित्र शुंग को अयोध्या का राजा राम बनाया
आजाद भारत देश के गौरव, अभिमान के जो भी प्रतिक, प्रतिमा,चिन्ह है वो ब्राह्मणी वर्चस्ववादी, मनुवादी व्यवस्था को उध्वस्त कर बने है. उसमे देश की मुद्रा पर विराजमान अशोकस्तंभ, राजदंड और अशोक चक्रांकित तिरंगा ध्वज इन प्रतिकों का विशेष कर समावेश है. हर भारतीय जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सावरकरी विचारधारा मानता है, उसे छोडकर बाकी सब इन प्रतिको के लिये अपनी जान देने के लिये भी हमेशा तयार रहता है. देश के प्रतिकों के साथ देश के नागरिकों का यह लगाव, आस्था ही मनुवादी ब्राह्मणी व्यवस्था के लिये एक खतरा है. इसलिये ये उसे बदलना चाहते है. पर ये संभव नहीं होने के कारण वो पर्यायी प्रतिकों को खडा कर रहे है. अयोध्या, राम मंदिर का धर्म ध्वजारोहण समारंभ यह उसका उदाहरण है. मनुवादी व्यवस्था के ये ठेकेदार ब्राह्मण केवल देश के प्रतिक, प्रतिमा ही बदलना नहीं चाहते, वो भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर निर्मित संविधान को भी बदलना चाहते है. पर ब्राह्मणों को विशेष हक्क, अधिकार देनेवाले मनुस्मृती जलाकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरने जो संविधान लिखा और लोकतांत्रिक व्यवस्था इस देश को दी, वो चट्टान की तरह मनुवादी व्यवस्था के सामने खडी है.
अयोध्या के राम मंदिर मे २५ नवम्बर को ऐसे ही ध्वजरोहन नहीं हुआ. यही तारीख और दिन क्यू ? उसका कारण है. २ साल, ११ महिने और १७ दिन की अथक मेहनत और मसुदा समिती के ७ सदस्यों मे से अधिक तर सदस्य के गैर मौजुदगी मे डॉ. आंबेडकर ने जो संविधान लिखा, उसे संविधान सभाने २५ नोव्हेंबर १९४९ स्वीकार किया. उसी दिन देश को दिशा देनेवाला ऐतिहासिक भाषण भी भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान सभा मे दिया. इसलिये यह तारीख और यह दिन. बाबरी मशीद भी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महानिर्वाण दिन ६ डिसेबर को ही शहीद किया गया है. २६ नवम्बर के दिन ही मुंबई मे २६/११ का आतंकी हमला हुआ. और देश मे यह दिन काला दिवस मनाने लगा. यह सब जानबुजकर किया जा रहा है.
इन सांप्रदायिक शक्ती के देश, देश के प्रतिक, प्रतिमा, चिन्ह,संविधान और लोकतंत्र के विरोधी कारनामे यही खतम नहीं होते. ये शक्तिया इतिहास को भी बदलना चाहती है. यह इतिहास ये शक्तिया इसलिये बदलना चाहती है की, इतिहास के पन्नो मे इनका इतिहास गुलामी का है. अमानवीय रहा है. इतिहास के पन्नो मे यह भगोडे है. मुगल और ब्रिटिशों के दलाल, दास , नोकर और तलवे चाटनेवाले है. इसलिये इतिहास अब उन्हे काटने उठता है. इसलिये उसे ये बदलना चाहते है.
पर इतिहास कभी बदला नहीं जाता. हो सकता है की कुछ समय के लिये उसको गायब कर दिया जाता है. पर वो खतम नहीं होता. जमीन के गर्भ से वो कभी भी उठ सकता है. इस समज की कमी होने के कारण यह शक्तीया बार बार इतिहास को बदलने की चेष्टा करती आ रही है. तथागत बुद्ध और उनका धम्म विचारो को खतम करके ब्राह्मणी धर्म व्यवस्थाने पुष्पमित्र शुंग को राम बनाकर अयोध्या का राजा बनाया . यह सब कांड इन शक्तीयों ने चक्रवती सम्राट अशोकने बनाये ८४ हजार बौद्ध स्तूप को उध्वस्त करके किया था. अयोध्या के खोज मे इस देश के भू गर्भ से सम्राट अशोक कालीन सब बौद्ध अवशेष मिले. ये दुनिया जानती है.
भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरने भी जब तथागत बुद्ध और उनके धम्म को जाना, तब उन्होंने उसको पुनर्जीवित करने का ऐतिहासिक काम किया. जब जब मोका मिला तब तब बुद्ध और उनके धम्म से संबंधित प्रतिक, प्रतिमा और विचारों को देश मे फिर से प्रस्थापित किया. सारी दुनिया जानती है की, भारत बुद्ध की भूमी है. यह सन्मान डॉ. आंबेडकरने फिर से इस देश को १४ ऑक्टोबर १९५६ को बुद्ध और उनका धम्म स्वीकार करके दिया. नागपूर मे हुआ यह धम्म दीक्षा समारंभ भी इतिहासिक रहा है. आज तक ऐसा समारंभ ना दुनिया हुआ है ,ना होगा. यह एक धम्म क्रांती है.
डॉ. आंबेडकर को जब जब मोका मिला तब तब उन्होंने बुद्ध और उनके धम्म से संबंधित प्रतिकों को देश के प्रतिक बनाये. अशोक चक्रांकित तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज, अशोक चक्रांकित राजदंड और राजमुद्रा ये उसके उदाहरण है. संविधान निर्माण की जिम्मेदारी मिलते ही बुद्ध कालीन ही गणराज्य को संविधान मे स्थापित करने का सफल प्रयत्न उन्होंने किया. ब्राह्मणी धर्म व्यवस्थेने मनुस्मृती के माध्यम से बुद्ध या चक्रवती सम्राट अशोक कालीन समता मुलक समाज व्यवस्था को खतम किया था, यही समता मुलक समाज व्यवस्था मनुस्मृती को जलाकर डॉ. आंबेडकर ने फिर स्थापित की.
आज केंद्र मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रिमोट से चलनेवाली मोदी की सरकार आने के बाद यही समताधिष्ट समाज व्यवस्था बदलने का प्रयास सांप्रदायिक शक्तीया मोदी के माध्यम से कर रही. राष्ट्रीय प्रतिकों को बदला जा रहा है. या उनके सामने आव्हाने खडे किये जा रहे है. २०२४ मे नये संसद भवन मे अशोक चक्रांकित राजदंड बदल कर राजेशाही का प्रतिक सिंगल को राजदंड के रूप मे संसद मे रखा है. और उसके रखने की विधी तंत्र मंत्र से की गयी. यह केवल राजदंड की बात नहीं है. देश को मनुवाद के तरफ ले जाने का प्रयास है.
२५ और २६ नवम्बर दिन आजाद भारत के इतिहास मे ऐतिहासिक दिन है. उसी दिन के अवसर पर मोदीने राम मंदिर मे ध्वजारोहण करके भगवा झेंडा पहराया. अब उस दिन को राष्ट्रीयता से जोडकर संविधान दिन का महत्त्व कम किया जायेगा. यह चाल है. उसे समजना वक्त की जरूरत है. उसे समजने मे ही देश का हित भी है. अगर नहीं समजे तो इस देश , संविधान और लोकतंत्र को बचना बहुत मुश्किल है..
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राहुल गायकवाड,
प्रदेश महासचिव, समाजवादी पार्टी
महाराष्ट्र, मुंबई.
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