क्योंकि हम समाज के सामने आदर्श और अनुकरणीय चरित्र प्रस्तुत नहीं कर पाए।अगर नेतृत्व कर्ता का चरित्र कलंकित और अव्यवहारिक है तो समाज आपके ऊपर विश्वास नहीं करेगा और जब विश्वास नहीं करेगा तब साथ भी नहीं देगा।समाज परिवर्तन के अनुरूप अगर अपना चरित्र नहीं बनाते तो हम कोई भी आंदोलन नहीं चला सकते और जब आंदोलन नहीं चला सकते तो जनमत नहीं बना सकते।जनमत के अभाव में ही हमारा पराभाव हो रहा है क्योंकि लोग हमारा निरीक्षण करते हैं।यदि उनके निरीक्षण में व्यक्ति खरा उतरता है तभी वह उस पर विश्वास करता है।अगर हम समाज के नुमाइंदे वाले लोग अपने आचरण या व्यवहार में चारित्रिक रुप से खरा नहीं उतरते तो हमारे समाज का जो टूटा हुआ विश्वास है उसे हम जोड़ नहीं सकते।आप समाज जीवन में काम कर रहे हो तो लोग आप पर नजर रखे हुए हैं।आपके बारे में लोग जानकारीयां ले रहे हैं और जानकारी लेने का नजरिया है आपका व्यवहार और आपका चरित्र।आप जो कहते हैं क्या आप वह करते हैं? यह जानकारी निरीक्षण से मिलती है।आपके कथनी और करनी में अंतर है तो वह समाज के संदर्भ में बेइमानी है,चरित्र हीनता है,बेइमानी का संकेत है।हमारे महापुरुषों की चारित्रिक मिसालें रही है।गौतम बुद्ध,गुरु रविदास जी से लेकर फुले,शाहू जी,अम्बेडकर,कांशीराम जी इनका चरित्र दर्पण के जैसा साफ है इसलिए वे हमारे लिए आदरणीय और अनुकरणीय है और जब इनका नाम लेकर समाज को बताया जाता है तो समाज उस बात पर सौ प्रतिशत भरोसा करता है।उससे प्रभावित होता है क्योंकि बुद्ध,गुर रविदास जी,फुले,अम्बेडकर,कांशीराम ने सिर्फ कहा नहीं किया है और इसके लिए उन्होंने कीमत चुकाई है!