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सुप्रीम कोर्ट के उपवर्गीकरण फैसले से सरकारी नीति को ताकत लेकिन सामाजिक तणाव की देशभर संभावना…
“सुप्रीम कोर्ट के उपवर्गीकरण फैसले से सरकारी नीति को ताकत लेकिन सामाजिक तणाव की देशभर संभावना…”
दिनांक एक ऑगस्ट 2024 साहित्यसम्राट लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे एनके जयंतीदिन के मौकेपर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सात न्यायमूर्ती खंडपीठने अनुसूचित जाती जनजाती इन के आरक्षण को लेकर पंजाब स्टेट विरुद्ध दविंदर सिंग इस केस मे अत्यंत महत्त्वपूर्ण तथा दूरगामी परिणामकारक निकाल देते हुए छह जजेस विरुद्ध एक बहुमतसे अनुसूचित जाती एवं जनजाती इनके उपवर्गीकरण को मान्यता बहाल करते हुए अपने ही 2005 सालके चिन्नया फैसले को पलटकर रख दिया है तथा भारतीय संविधान की धारा 341 यह उपवर्गीकरण को मान्यता देती है इस तरह का नया संविधानिक इंटरप्रिटेशन दिया है.
भारतीय सर्वोच्च न्यायालयके प्रमुख न्यायाधीश न्यायमूर्ती डी वाय चंद्रचूड तथा अन्य छह न्यायमूर्ती द्वारा इस निकालपत्र मे यह भी स्पष्ट किया है की अनुसूचित जाती जनजाती का उपवर्गीकरण करना यह संविधानके आर्टिकल 341 का उल्लंघन नही है बल्की आर्टिकल 341 इसकी इजाजत देता है. हालाकी इससे पूर्व 2005 मे आंध्र प्रदेश राज्य मे अनुसूचित जाती मे ए. बी. सी. डी. ऐसे उपवर्गीकरण को लेकर चिन्नया केसमे उपवर्गीकरण की समीक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पाच जजो की खंडपीठ ने बहुमत से यह स्पष्ट किया था कि यह संविधान की धारा 341 का उल्लंघन है तथा संविधान की धारा 341, 342 के तहत अनुसूचित जाती एवं जनजाती की की सूचीमे हस्तक्षेप करने का अधिकार सिर्फ संसद को ही है और इसलिये इनका उपवर्गीकरण असविधानिक करार दिया था.
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने अपने ही 2005 के फैसले को पलटकर रख दिया है तथा वर्तमान मे देश मे जो ताकते खासकर सत्ता मे बैठे हुई भारतीय जनता पार्टी और उनके परिवार द्वारा आरक्षण के लाभ को लेकर बहुत ही कमजोर जातीय को फायदा पहचाने के नाम पर अनुसूचित जाती एवं जनजाती इनका विभाजन होना चाहिये, इनका उपवर्गीकरण होना चाहिये ऐसी आवाजेउठाई गई थी. महाराष्ट्र मे इसके तहत अनुसूचित जाती के उपवर्गीकरण के लिए वर्तमान राज्य सरकारने एक कमिटी का भी गठन किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले से अनुसूचित जाती एवं जनजाती की उपवर्गीकरण को तथा ऐसी हिमायते करनेवाली सामाजिक और राजनीतिक ताकतो को एक नयी ऊर्जा और ताकत मिली है जिसके भविष्य मे दूरगामी परिणाम होंगे. अब इस फैसले के कारण केंद्र तथा कोई राज्य सरकार अनुसूचित जाती अथवा जनजाती इनका उपवर्गीकरण करना चाहते है उसको उपवर्गीकरण कानुनी रूप से सही आकडोके आधारपर करना अनिर्वाय है वरना ऐसा उपवर्गीकरणभी गैरसमविधानिक हो सकता है. इसलिये उपवर्गीकरण के कारण राज्य सरकार की भी जिम्मेदारीया बड चुकी है और भविष्य में ऐसे उपवर्गीकरण को लेकर देश के उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय मे भी कानूनी मामलोका भार अवश्य बडेगा.
दुसरी तरफ सरकारी नोकरीओमे नौकर भरती नही , आऊटसोर्सिंग और कंत्राटीकरन सरकारी नौकरिया खतम हुई है. महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य मे अनुसूचित जाती जनजातियों के लिए मुंबई उच्च न्यायालय के एक फैसले के कारण 2017 से पदोन्नती का आरक्षण स्थगित है. उसको लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालयाने में महाराष्ट्र सरकार की याचिका प्रलंबित है. लेकिन उसके लिए ना महाराष्ट्र सरकार के पास, ना सर्वोच्च न्यायालय के पास समय है. लेकिन उपवर्गीकरण का मामला 2024 का होने के बावजूद भी इसके उपर सर्वोच्च न्यायालयाने त्वरित फैसला दिया है यह भी एक अचंबित करने वाली बात है.
इस फैसले के कारण भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकारने जो ओबीसी का चार तुकडो मे बटवारा करके आरक्षण भी चार तुकडो मे बाटणे के लिए जस्टीस रोहिणी कमिशन का गठन जो किया था अब केंद्र सरकार उसके उपर काम करने की संभावना बढ चुकी है क्योंकि इस फैसले से उसको भी लागू करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार को एक नई ताकद मिली है.
एड. डॉ. सुरेश माने
(संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष
बहुजन रिपब्लिकन सोशालिस्ट पार्टी)