• 124
  • 1 minute read

दुनियाके सभी आदिवासी लोगोकों बुद्ध तत्वज्ञान पढना जरुरी हॆ!

दुनियाके सभी आदिवासी लोगोकों बुद्ध तत्वज्ञान पढना जरुरी हॆ!

दुनियाके सभी आदिवासी लोगोकों बुद्ध तत्वज्ञान पढना जरुरी हॆ! क्यो की सिद्धार्थ गॊतम बुद्धके पहले गुरु, महान सांख्य तत्वज्ञानी आलार कालाम आदिवासी थे!

मॆने १९७४ में प्री-यूनिवर्सिटीकी शिक्षाके लिए डाॅ. बाबासाहब आंबेडकारजीके ”मिलिंद कॉलेज” ऒरगांबादमें प्रवेश लिया। जब मैं पहले दिन कॉलेज गया, तो मिलिंद कॉलेज के दालनमें बहुतबडी ऊंची दीवारपर  “मिलिदा प्रश्न” लिखा था। यह पढ़ने कर, मिंलीदा प्रश्न क्या है?  मैं इसे समझनेके लिए सालोंतक उत्सुक रहा हूं। हालमें ही मेरी लाॅयब्ररीके कुछ पुराने किताबे पढ़ने के बाद, मुझे मिलींदा प्रश्न ऒर ऊनके अनुसार, आदिवासी सांख्य तत्वज्ञानी ”आलार कालाम” समजमे आया! जिसका सारांश निम्नलिखीत प्रस्तुत है।
 
            महाराष्ट्रके धुलेसे, काँ. शरद पाटिल, (मार्क्स, फुले,आंबेडकरवादी– माफुआ)के संयोजकव्दारा लिखे गये “दास शुद्रकी गुलामगीरी” दो ग्रंथोमें “राजा मिलिंदा और बौद्ध भिक्षु नागसेन” के बीच बातचीतका वर्णन पढनेको मिला!
           इसे पढ़ते हुए, बौद्ध धम्म और सामाजिक न्याय के विभिन्न पहलुओंका विशेषत: गॊतम बुद्धका ”शुन्यवाद” की
 (Nothingness)  खोज  करनेवाला एक दार्शनिक संदर्भ मेरे दिमाग में प्रवेश कर गया। ईस संदर्भमे राजा मिंलीदाके बातचीत का संक्षिप्त सारांश यहां प्रस्तुत है….
               विश्वविख्यात विद्वान राजा मिलिंदाने देशके सभी विद्वानोंको “धम्म और दर्शनपर शास्त्रार्थ” (Open Debate) करने की खुली चुनौती दी थी, की कोयीभी उनकी चुनौतीको
स्वीकार करें! ऊनके अनुसार बौद्ध भिक्षु ”नागसेन” व्दारा उस चुनॊतीको स्विकार किया गया। उनके अनुसार, “राजा मिलिंदा” और बौद्ध भिक्षु “नागसेन” के बीच रेगिस्तान में चर्चा का स्थान तय किया गया था।
 
         बौद्ध भिक्षु “नागसेन” समयसे पहलेही निश्चित स्थानपर पहुंचे ऒर राजा “मिलिंदा” की प्रतीक्षा कर रहे थे। कुछही क्षण बाद राजा मिलिंदा अपने रथपर सवार होकर उस स्थान पर पहुंचते हैं। तब राजा मिलिंदा का, भिक्षु नागसेनके माध्यमसे  अभिवादन किया गया! और बातचीत (चर्चा) शुरू की गयी—
 
१) प्र. भिक्खु नागसेन= राजन, आप आये हो?
ऊ. राजा मिलिन्द = हां, मैं आया हूं।
 
२) प्र. भिक्खु नागसेन = आप कसॆ आये हो?
ऊ. राजा मिलिन्दा = मैं मेरा रथ  लेकर आया हूँ।
 
३) प्र. भिक्खु नागसेन =
रथ कहां है?
ऊ. राजा मिलिन्दा = रथ पर हाथ रखकर कहा की, “यह मेरा रथ है”!
 
४)  प्र. भिक्षु नागसेन रथके घोड़े पर हाथ रखकर पूछते हैं, “क्या यह घोड़ा रथ है?”
ऊ. राजा मिलिन्द–नहीं।
 
५) प्र. भिक्षु नागसेन – रथ के पहियापर हाथ रखते हुए, वे पूछते हैं, की “रथके पहिया क्या रथ है?”
ऊ- राजा मिलिन्द–नहीं।
 
६)  प्र. भिक्षु नागसेनने असुधापर  (आसुडपर) हाथ रखकर पूछा, क्या असुधा रथ  है?
ऊ. राजा मिलिन्द–नहीं।
 
७) भिक्षु नागसेन – रथ के  डंडेपर(chariot’s poles)
  हाथ रखते हुए, वे पूछते हैं, “रथके दंडे क्या रथ है?”
राजा मिलिन्द–नहीं।
 
              तब भिक्षु नागसेनने राजा मिलिन्दासे कहा, “हे राजन, मैं आपसे पूछ रहा हूं, की रथ क्या है?”  मैं ये प्रश्न पूछते-पूछते थक गया हूँ, लेकिन आप यह नहीं समझा पा रहे की रथ याने क्या है? अभी अभी तो आपने कहा था, की आप रथ से आये हैं, अब कहते हैं की आप जिस वाहन से आये हैं वह रथ नहीं है?
          राजन! तुम्हें किस बात का डर है ? जो की, आप झूठ बोल रहे  हो? कृपया मेरे प्रश्न का उत्तर दिजीए!
           राजा मिलिन्दा निरुत्त्तर थे, उत्तर नही दे पाये! ईस कारण भिक्षु नागसेनसे, उसके स्वभाव के बारे में पूछते हैं। उस समय, बौद्ध भिक्षु नागसेनने कहा बौद्ध धर्ममें अनात्मन (कोई आत्मा नहीं) की अवधारणा को समझाया। भिक्खु नागसेनने रथ की उपमा देते हुए बताया की, जिस प्रकार रथ कोई स्थिर वस्तु नहीं है, बल्कि यह अपने भागों का एक समूह है।  इसी प्रकार, आत्मा भी एक स्थिर वस्तू नहीं है, बल्कि एक निरंतर बदलती प्रक्रिया है।
               जिस रथ पर आप बैठ कर आये हो, यह १०० साल पहले अस्तित्व में नहीं था, लेकिन आज मौजूद है। अगले १०० वर्षों के बाद वह रथ अस्तित्व में नहीं रहेगा। 
              ऒर भिक्षु नागसेनने राजा मिलींदासे कहा, हे “राजन, मैं १०० साल पहले इस धरती पर पैदा नहीं हुआ था, लेकिन मैं आज जीवित हूं, और मैं अब से १०० सालबाद जीवित नहीं रहूंगा!” अर्थात्, यह कल नहीं था, लेकिन आज है, और १०० साल बाद यह नहीं रहेगा। अर्थात् शून्यता के चक्र अनुसार, कल नहीं था, आज है, लेकिन कल नहीं होगा। इस दर्शन के समानही, विश्व के अनेक देशों के मुलनिवासी / आदिवासी लोगोंके दर्शनमें भी ‘शून्यता’ की अवधारणा विद्यमान है। ईसे मैं क्रम से प्रस्तुत करूंगा।
 
          राजा मिलिंदा जिसे मेनांडरके (Menander)
 नाम से भी जाना जाते थे! वो एक यूनानी राजा थे। जिन्होंने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इंडो-ग्रीक साम्राज्य पर शासन किया था।  उनका उल्लेख “मिलिन्दपन्ह” (राजा मिलिंडा के प्रश्न) में एक ऐसे राजा के रूप में किया गया है, जिसने बौद्ध धर्मको अपनाया था।
 
           मिलिन्दपन्हके अनुसार, राजा मिलिन्द एक न्यायप्रिय शासक थे, जो अपनी प्रजासे बहोत प्रेम करते थे।  वह बौद्ध धर्मके संरक्षक थे। उसके दरबार में कई बौद्ध भिक्षु और विद्वान थे।  अपने शासनकाल के दौरान, उन्होंने इंडो-यूनानी साम्राज्य पर प्रभुत्व स्थापित किया, जिसमें आधुनिक पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिमी भारत और पूर्वी अफ़गानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल थे।
(नोट- यद्यपि अलार कलामके शून्यता के सिद्धांत और इसी प्रकार बुद्ध के शून्यता के सिद्धांत और नागार्जुन के शून्यता के सिद्धांत के बीच दार्शनिक मतभेद हैं, लेकिन चूंकि दुनिया के आदिवासी/मूलनिवासी लोगोंकी अवधारणाएं कुछ सैद्धांतिक स्तर पर समान हैं, इसलिए उनके बारे में मेरा दृष्टिकोण अलग है। मैं इसके बारे में अलगसे लिखूंगा) 
 
लटारी मडावी
नागपुर
मो.नं. ९५१८३५९२६६
 
संदर्भ
1) दास शूद्रों की गुलामगीरी – भाग १ और भाग-२ लाॅ. शरद पाटिल, धुले
 
2) “मिलिंदपन्हा” 
(राजा मिलिंद के प्रश्न), भिक्खु पेसला द्वारा अनुवादित (२००१), पृ. १-५
3) डॉ. विलास आदिनाथ सांगवेद्वारा “द बुद्ध एंड द जैन” (२००१), पृ.१२३-१२५
0Shares

Related post

“रुपया डॉलर विनिमय: वर्गीय परिणाम आणि परकीय गुंतवणूक”

“रुपया डॉलर विनिमय: वर्गीय परिणाम आणि परकीय गुंतवणूक”

रुपया डॉलर विनिमय: वर्गीय परिणाम आणि परकीय गुंतवणूक  रुपया डॉलर विनिमयाच्या चर्चांमध्ये वर्गीय आयाम टेबलावर आणण्याची…
स्मार्टफोन, टीव्ही, बाजारपेठ: बदललेल्या जीवनशैलीवर लोकांचे मिश्रित विचार

स्मार्टफोन, टीव्ही, बाजारपेठ: बदललेल्या जीवनशैलीवर लोकांचे मिश्रित विचार

स्मार्टफोन, टीव्ही, बाजारपेठ: बदललेल्या जीवनशैलीवर लोकांचे मिश्रित विचार ती लहानपणची बाहुली किंवा विदूषक आठवतोय ? कसाही…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *