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महाराष्ट्र चाहता है: एक कर्पूरी ठाकुर !

महाराष्ट्र चाहता है: एक कर्पूरी ठाकुर !

महाराष्ट्र चाहता है: एक कर्पूरी ठाकुर !

महाराष्ट्र के कर्पूरी ठाकुर: कल्याणराव दळे !

ओबीसीनामा-19. लेखकः प्रोफे. श्रावण देवरे

(उत्तरार्ध)

हालाँकि जयप्रकाश नारायण समाजवादी पार्टी के नेता और जनता पार्टी के संस्थापक थे, लेकिन वे आम तौर पर जाति-आधारित आरक्षण के विरोधी थे। उनका स्पष्ट मत था कि आरक्षण केवल आर्थिक आधार पर ही दिया जाना चाहिए। परंतु, राम मनोहर लोहिया और त्यागमूर्ति चंदापुरी के गठबंधन और शहीद बाबू जगदेव प्रसाद के आक्रामक आंदोलन के माध्यम से जो ओबीसी आंदोलन अपनी चरम सीमा तक पहुँचा था और उसमें से अनुपलाल मंडल, राम अवधेश सिंह, कर्पूरी ठाकुर जैसे असंख्य ओबीसी नेता आक्रामक रूप से काम कर रहे थे।

इन असंख्य ओबीसी नेताओं के दबाव के कारण समाजवादी पार्टी और बाद में जनता पार्टी में किसी की जातिगत आरक्षण के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं पड़ी। बेशक, राम मनोहर लोहिया की “पिछड़ा पावे सौ में साठ…!” की घोषणा ने भारी हलचल पैदा कर दी थी! यह उत्तर भारत में समाजवादी ओबीसी नेताओं के लिए एक बड़ी नैतिक ताकत थी।

इसी नैतिक बल पर 1977 में जननायक कर्पूरी ठाकुर ने दूसरी बार मुख्यमंत्री बनते ही मुंगेरीलाल आयोग की अनुशंसा के अनुरूप 26 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का साहस किया. लेकिन एक जमीनी नेता होने के नाते, कर्पूरी जी संभावित व्यावहारिक कठिनाइयों से अवगत थे। वे पूरी तरह से जानते थे कि दलित+आदिवासी आरक्षण को अनिच्छा से स्वीकार करने वाले ब्राह्मण-क्षत्रिय जमींदार ओबीसी के आरक्षण का पुरजोर विरोध करेंगे और उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने से भी नहीं चूकेंगे। इसलिए उन्होंने इसमें से कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की. इस मध्य मार्ग को ही “कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला” कहा जाता है।

मुंगेरीलाल आयोग की सिफ़ारिशों में ओबीसी के 26 प्रतिशत आरक्षण में से छह प्रतिशत आरक्षण निकालकर ब्राह्मण-क्षत्रिय जमींदार जातियों को दे दिया गया। कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूले के अनुसार आरक्षण का बंटवारा इस प्रकार किया गया-

1) (कम) पिछड़ा वर्ग का अर्थ है बड़ी ओबीसी जातियाँ। (एलबीसी) 12 प्रतिशत

2) अति पिछड़ी जातियां. (एमबीसी) (माइक्रो ओबीसी).. 08 प्रतिशत

3) सभी जाति की महिलाओं को दिया गया आरक्षण……03 प्रतिशत

4) उच्च जाति के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईबीडब्ल्यू) को 03 प्रतिशत दिया गया

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, उच्च जातियों को उनका हिस्सा देने के बावजूद ब्राह्मण-क्षत्रिय जमींदार जातियों ने राज्य में प्रखर विरोध करना शुरू कर दिया। सर्वत्र जातीय दंगों का भयावह वातावरण निर्मित हो गया। अपनीही पार्टी के ऊंची जाति के ब्राह्मण-क्षत्रिय जमींदार विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया और दलित विधायक राम सुंदर दास का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाया गया. चूंकि दलित राम सुंदर दास ऊंची जाति के लोगों की कठपुतली थे, इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूले को उखाड़ फेंका.

एक तरफ ओबीसी विधायक देवेन्द्र प्रसाद यादव ने अपनी विधायकी से इस्तीफा देकर कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया था. वहीं दूसरी ओर एक दलित विधायक का ऊंची जाति की कठपुतली बनकर कर्पूरी ठाकुर का मुख्यमंत्री पद हथिया लेना बेहद दुखद घटना थी.

आरक्षण लागू होने के बाद ऊंची जाति ब्राह्मण-क्षत्रिय जमींदार जातियों की ओर से बेहद भद्दी-भद्दी गालियां दी गईं। मंडल कमीशन लागू करने के बाद वी.पी. सिंह को भी ऐसी ही अश्लीलता सहनी पड़ी थी। वर्तमान समय में माननीय छगन भुजबल साहब की अवस्था कर्पूरी ठाकुर और वी.पी. सिंह से अलग नहीं है. मराठा ग्राम गुंडों से लेकर मराठा विधायकों तक संस्कारहीन लोगों द्वारा भुजबल साहेब को जो गालियाँ दी जा रही हैं उसे सुनकर फोरास रोड के दलालों और भड़वों का भी सिर शर्म से झुक जायेगा। जननायक कर्पूरी ठाकुर को अश्लील गालियों के साथ साथ जातीय अपमान भी सहन करना पड़ा। इसमें एक गाली थी – “कर्पूरी कर पूरा …. छोड़ गद्दी, उठा छूरा”!

 

कर्पूरी ठाकुर का फॉर्मूला सिर्फ आरक्षण तक ही सीमित नहीं है. इसका दायरा बहुत बड़ा है. जब भी कोई जागृत ओबीसी सत्ता की कुर्सी पर बैठता है, तो वह समाज की सभी शोषित पीड़ित जातियों के उद्धार के लिए सत्ता का संचालन करता है! इसे करुणानिधि, कर्पूरी ठाकुर, रामनरेश यादव, नीतीश कुमार आदि जागरूक ओबीसी मुख्यमंत्रियों ने सिद्ध किया है। करुणानिधि ने मुसलमानों-ईसाइयों के साथ-साथ खुद को जमींदार-क्षत्रिय मानने वाली जातियों को भी उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया है. तमिलनाडु भारत में दलितों को सबसे ज्यादा आरक्षण देने वाला राज्य है।

तमिलनाडु दलितों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 18 प्रतिशत आरक्षण देने वाला एकमात्र राज्य है। अब जातिवार जनगणना के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में दलित जातियों के लिए आरक्षण 16 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया है. कर्पूरी ठाकुर ने ब्राह्मण-क्षत्रिय जमींदार जातियों को भी आरक्षण दिया। महिलाओं को अलग से आरक्षण देने वाले कर्पूरी ठाकुर देश के एकमात्र मुख्यमंत्री हैं.

 

कर्पूरी ठाकुर ने जाति उन्मूलन की दिशा में एक और साहसिक कदम उठाया। उस समय खुद को क्षत्रिय समझने वाली जमींदार जातियों – राजपूत, ठाकुर, भूमिहार-आदि जातीयोंकी जातिगत सशस्त्र सेनाएं थीं, आज की रणवीर सेना, करणी सेना उसी के अवशेष हैं। सामंतवादी-जमींदारों की ये जाति-आधारित सशस्त्र सेनाएँ दिन दहाड़े दलित बस्तियों में बंदूकें लेकर घुस जाती थीं और अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों और युवाओं की बेरहमी से हत्या कर देती थीं! बिहार में दलितों का नरसंहार आम बात थी! ऐसे आतंक के दौर में मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने एक क्रांतिकारी कानून बनाया.

“दलित बस्तियों में बंदूकों का वितरण” यह कानून बनाकर तथा दलित बस्तियों में जाकर अपने हाथों से बंदूक वितरण कार्यक्रम का उद्घाटन किया। यदि दलित बस्ती में एक भी बंदूक है तो किसी राजपूत-ठाकुर की दलित बस्ती में घुसने की हिम्मत नहीं पड़ेगी, यह कर्पूरी ठाकुर का मुख्य उद्देश्य था! यह क्रांतिकारी कार्य केवल कर्पूरी ठाकुर ही कर सकते थे क्योंकि वे एक जागृत ओबीसी थे। देश में कुछ मुख्यमंत्री ऐसे भी हुए जिन्होंने फुले अम्बेडकर का नाम तो लिया, लेकिन वे ऐसा साहस नहीं दिखा सके क्योंकि वे जागरूक ओबीसी नहीं थे।

जननायक कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक और सामाजिक शत्रु विरोधी पार्टियों की तुलना में अपनी ही पार्टी में अधिक थे। उनके ऊपर कई आरोप लगे, लेकिन कोई भी उन पर वित्तीय भ्रष्टाचार और गैरकानूनी काम करने का आरोप नहीं लगा सका. उनकी पुश्तैनी झोपड़ी को छोड़कर गांव में मिट्टी का कच्चा घर मृत्युपर्यंत वैसा ही बना रहा। उन्होंने गरीबों को घर और जमीन मुहैया कराने के लिए कई कार्यक्रम लागू किये, लेकिन अपने लिए एक भी घर नहीं बनाया. उनकी मौत के बाद जब उनका बैंक पासबुक चेक किया गया तो उसमें सिर्फ 500 रुपये जमा थे. जब वे 1952 में पहली बार बिहार के विधायक बने, तो उन्हें आधिकारिक विदेशी दौरे के लिए चुना गया। प्रतिनिधिमंडल में शामिल सभी विधायकों ने विशेष कोट सिलवाये थे. लेकिन कर्पूरी जी अपने लिए कोट नहीं सिलवा सके. उन्होंने एक फटेहाल दोस्त से एक फटा हुआ कोट उधार लिया और विदेश दौरे पर निकल पड़े। यूगोस्लाविया के प्रधान मंत्री ने कर्पूरी ठाकुर का वह फटा हुआ कोट देखा और तुरंत एक नया कोट मंगाकर कर्पूरी ठाकुर को सप्रेम उपहार स्वरूप भेंट किया। विधानसभा में साइकिल चलाकर जाने वाले कर्पूरी ठाकुर पहले और आखिरी विधायक थे।

ऐसे क्रांतिकारी मुख्यमंत्री अगर देश के हर राज्य से मिले तो क्या बदलाव आएगा? आज महाराष्ट्र को ऐसे ही मुख्यमंत्री की जरूरत है! क्योंकि आज महाराष्ट्र फुले-शाहू-अम्बेडकर की भूमि नहीं रही, वह 70 के दशक के बिहार की तरह जंगलराज बन गयी है। बिहार की जमींदार- सामंती जातियों की तरह महाराष्ट्र की भी जमींदार-जाति दंगाई, हिंसक और हत्यारी हो गई है। ओबीसी का आरक्षण लूटकर नष्ट करने के लिए निकली है। ऐसे समय में, महाराष्ट्र को चाहिए: मुख्यमंत्री पद के लिए एक नया कर्पूरी ठाकुर!

कल्याण राव दळे महाराष्ट्र में माइक्रो ओबीसी बलुतेदार जातियों को संगठित करने और उन्हें जागृत कर समाज की मुख्यधारा में लाने का काम कर रहे हैं। वे अध्ययनशील और कुशल हैं। वे लगातार सामाजिक परिवर्तन का कार्य कर रहे हैं। साधारण नाई परिवार से आने वाले कल्याण राव गरीबी की मार झेलते हुए भी सामाजिक कार्य कर रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर के सभी गुण उनमें पूर्ण रूप से समाहित हैं।

इसलिए आज उन पर महाराष्ट्र का कर्पूरी ठाकुर बनने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी आ गई है। ओबीसी राजकीय आघाडी उन्हें महाराष्ट्र का भावी मुख्यमंत्री मानता है। हम ओबीसी राजकीय आघाडी की ओर से 2024 के चुनाव के लिए मुख्यमंत्री के रूप में उनके नाम की घोषणा कर रहे हैं। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर महाराष्ट्र के सभी शोषित-पीड़ित लोगों के साथ न्याय करेंगे। धन्यवाद!

इस प्रस्ताव के स्वीकार होने तक सभी लोगों को जय ज्योति! जयभीम!! सत्य की जय हो!!!

 

– प्रोफे. श्रावण देवरे

संस्थापक-अध्यक्ष,ओबीसी राजकीय आघाडी

मराठी से हिन्दी अनुवाद

-चन्द्रभान पाल

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