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जरांगे फैक्टर को जड़ से समझें!

जरांगे फैक्टर को जड़ से समझें!

         जरांगे के मुंबई आंदोलन के दौरान कई कार्यकर्ताओं ने मुझे फ़ोन करके सवाल पूछे। पहला सवाल था, ‘सर, मराठा आरक्षण से जुड़े हर मुद्दे और घटना पर आप काफ़ी सक्रिय और विचारशील दिखते हैं। लेकिन जरांगे के मुंबई आंदोलन के दौरान आपकी उपस्थिति कहीं नज़र नहीं आई। न कोई मार्गदर्शक लेख, न कोई व्याख्यान, न ही एक भी आंदोलन! आप जैसे आक्रामक और निडर नेता भला कैसे शांत रह सकते हैं? अगर हमे इस बारे में भी मार्गदर्शन मिले, तो सच्चाई सामने आ जाएगी। क्योंकि ज़्यादातर ओबीसी नेता किसी न किसी गॉडफ़ादर की मर्ज़ी से बंधे होते हैं, इसलिए वे कभी पूरा सच नहीं बताते।’

मैं असमंजस में था कि ऐसे सवालों का क्या जवाब दूँ। क्योंकि जो मैं कहना नहीं चाहता था, उसे ओबीसी कार्यकर्ता मुझसे या मेरे मुँह से ज़बरदस्ती कहलवाने की कोशिश कर रहे थे। कल दिल्ली के फ़ॉरवर्ड प्रेस के संपादक नवल कुमार जी ने मुझे फ़ोन करके ऐसे ही सवाल पूछे और ऐसी ही माँगें कीं। मैंने उन्हें कारण बताए, लेकिन वे कारण उन्हें रोक नहीं पाए। उन्होंने मुझे कई सिद्धांत और कई उदाहरण देकर आश्वस्त किया कि मुझे आज लिखना ही चाहिए। मेरे न लिखने के कारण समझाने पर भी नवल कुमार रुके नहीं, वे बोलते रहे। उन्होंने फ़ोन पर आगे कहा, “आज के लोग आपके लेख या व्याख्यान न पढ़ेंगे, न सुनेंगे, अगर पढ़ेंगे भी, तो समझेंगे नहीं, समझेंगे भी, तो उसके अनुसार कार्य करने का साहस नहीं कर पाएँगे, और जिनमें साहस होगा, वे अपने गॉडफादर के दबाव में होंगे। लेकिन कल की पीढ़ी आपसे ज़्यादा आक्रामक और निडर हो सकती है, और वह पीढ़ी आज आपके लेख पढ़कर कल उसके अनुसार कार्य करने का प्रयास करेगी। आपको उनके लिए लिखना ही होगा।” मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि मैं लिखूँगा और फ़ोन रख दिया। लेकिन इस अवसर पर मुझे एक पुरानी घटना याद आ गई। कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा करते समय ये मुद्दे उठाए गए थे। तात्यासाहेब महात्मा जोतीराव फुले और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के समय में, क्या किसी ने ऐसा प्रश्न पूछा होगा? “तात्यासाहेब-बाबासाहेब, आप किसके लिए लिख रहे हैं? ओर किन लोगों के लिए लिख रहे है? कितने दलित-बहुजन शिक्षित हैं? केवल ब्राह्मण ही आपकी रचनाएँ पढ़कर सचेत होते हैं।” तब इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार मिला होगा कि, ‘आने वाली पीढ़ी पढ़ेगी और आंदोलन को आगे बढ़ायेगी। अगली पिढी के लिए लिखो।’

लेकिन आज की पीढ़ी को देखकर मुझे ज़्यादा संतुष्टि नहीं होती। आज 200-250 वर्षों के बाद तात्यासाहेब-बाबासाहेब की पुस्तकों की रिकॉर्ड छपाई और रिकॉर्ड ब्रेक बिक्री हो रही है। इससे सिद्ध होता है कि आज की पीढ़ी पढ़ भी रही है और समझ भी रही है। तात्यासाहेब-बाबासाहेब को पढ़कर आज की पीढ़ी ने क्या समझा? आज की पीढ़ी समझ गई कि तात्यासाहेब-बाबासाहेब ने कलम के माध्यम से जो औज़ार दिए हैं, उनका उपयोग करके क्रांति करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, त्याग करना होगा और कभी-कभी निर्धन भी बनना होगा। अगर हम इन हथियारों को सत्ताधिश मराठा-ब्राह्मणों के पास गिरवी रख दें, तो हम ज़्यादा पैसा कमा सकते हैं और ज़्यादा सुख-सुविधाएँ प्राप्त कर सकते हैं। गिरवी रखना लड़ने से ज़्यादा लाभदायक है। प्रतिक्रांति क्रांति से ज़्यादा लाभदायक है। एक गिरवी रखे हुए नेता को एक जुझारू नेता से ज़्यादा सत्ता, धन और सम्मान मिलता है। एक पार्टी का संस्थापक-अध्यक्ष निजी तौर पर कहता है, “अपनी पार्टी के उम्मिदवारों को जिताने के बजाय, मुझे उन्हें पराजित करके किसी दूसरी रूलींग पार्टी के विधायकों और सांसदों को जिताने में ज़्यादा फ़ायदा होता है।” आर.एस.एस. के ब्राह्मीण उम्मीदवार नितिन गडकरी को जिताने के लिए उसी निर्वाचन क्षेत्र से 18 बौद्ध चुनाव लड़ रहे थे। सिर्फ़ तात्यासाहेब महात्मा फुले के नाम का इस्तेमाल करके करोड़ों रुपये की संपत्ति कमाई जा सकती है। फिर उसके लिए अगर सभी मराठा ओबीसी में आ जाएँ तो चिंता की कोई बात नहीं है। बाबासाहेब को बेचकर केंद्र में मंत्री पद मिल सकता है।

और सिर्फ़ तात्यासाहेब-बाबासाहेब का उदाहरण देना काफ़ी नहीं होगा। हर जाति के विद्वानों ने इतिहास और पुराणों से अपनी-अपनी जाति के संत, महापुरुष और महापुरुष खोज निकाले हैं। चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराव होल्कर, महादेव का पिंड हाथ में लेने वाली महाराज्ञी अहिल्यामाई होल्कर, संत गाडगे महाराज, संत सेना महाराज, संत रैदास, संत सावता, संत नामदेव ऐसे अनगिनत हैं। जाति संगठन या दल स्थापित किए जाएँ और अपनी-अपनी जाति के संतों और महापुरुषों को बाजार मे बेचकर व्यापार किया जाए! महापुरूषों को खरीदने के लिए ब्राह्मण और मराठों ने पहले ही रेट बोर्ड तैयार कर लिया है और उसे बाज़ार चौक में लगा दिया है। महापुरुषों की तस्वीरें और मूर्तियाँ बेचने से ज़्यादा पैसा नही मिलता है। लेकीन महापुरुषों को बेचने पर ज्यादा कमाई होती है। महापुरुषों को बेचने का धंदा चलाने वाले नेता इतने चतुर होते हैं कि वे अपने महापुरुषों के लिए भी ऊँची कीमत पाने के तरीके खोज लेते हैं। सब्जी विक्रेता बाजार में अपने माल के बारे में ऊँची आवाज़ में चिल्लाते हैं, ‘ताज़ी ताजी सब्ज़ियाँ लेलो, हरी हरी सब्ज़ियाँ लेलो। फुले-आंबेडकर का अच्छा दाम पाने के लिए, हमारे व्यापारी बाजार में ऊँची आवाज़ में चिल्लाते हैं, ‘फुले-आंबेडकर ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं थे, बल्कि ब्राह्मणवाद के विरुद्ध थे।’ ‘बाबासाहेब मराठों को भी आरक्षण लेने के लिए पुंछा था।’ ‘तात्यासाहेब मराठों को शूद्र मानते थे’ ऐसा वे ऊँची आवाज़ में चिल्लाते हैं कि बाजार में ब्राह्मण-मराठा नेता महापुरूष खरीदने आते हैं और अच्छी कीमत देकर चले जाते हैं। क्रांतिकारी महाराज्ञी अहिल्या माई होल्कर, जिन्होंने तलवार की नोंक पर पेशवाओं को आसमान दिखाया था, उनके हाथ मे तलवार देने के बजाय महादेव का पिंड दे दिया तो सत्ताधिश खरीदार खुश हो जाते है और अच्छी रकम देते है। अगर अन्ना भाऊ साठे को ‘कॉमरेड’ के पद से ‘लोकशाहीर’ के पद पर पदावनत कर दिया जाए, तो कीमत अच्छी मिलती है। बाज़ार में खड़े होकर मार्क्स की प्रशंसा करते हुए व्यापारी ने कहा, “यदि वर्ग नष्ट हो जाएँ, तो जातियाँ स्वतः ही अपने-आप नष्ट हो जाएँगी।” ऐसा कहने से ब्राह्मण खरिददार खूश हो जाता है। ब्राह्मणों को जब गॅरंटी मिल जाती है की मार्क्स की वजहसे जातीव्यवस्था खतम नही होगी और अपना ब्राह्मणवाद बरकरार रहेगा तो वो बड़ी संख्या में आते हैं और मार्क्स को सर पर बिठाकर बेंड बाजे के साथ जुलूस निकालकर घर ले जाते है। शूद्रों-अतिशूद्रों के राजा, कुलवाडी कुलभूषण छत्रपति शिवाजी महाराज को ‘गोब्राह्मण प्रतिपालक’ मानकर मराठों ने ब्राह्मणों से बहुत बड़ी कीमत वसूली है और आज भी वसूल रहे हैं। मराठे आधी सदी से भी ज़्यादा समय से ब्राह्मणों की गोद में बैठकर महाराष्ट्र पर राज कर रहे हैं और कोई यह नहीं कह सकता कि आगे कितने साल और राज करते रहेंगे।।

अब, इस परिचयात्मक आलेख को विराम देते हैं और जरांगे प्रकरण की ओर मुड़ते हैं! लेख के उत्तरार्ध में, जरांगे को दिये हुए दो शासन निर्णय (GR) पर चर्चा करते हैं! अब, आपके मन में यह प्रश्न उठा होगा कि परिचय (Preface) में दिए गए विश्लेषण और जरांगे के बीच क्या संबंध है? तो, आइए इस प्रश्न का उत्तर भी आर्टिकल के दुसरे भाग में खोजें!
तब तक, जयजोती, जयभीम, सत्य की जय हो!

-प्रोफे. श्रवण देवरे, संस्थापक-अध्यक्ष,
ओबीसी राजनीतिक गठबंधन,

संपर्क नंबर- 81 77 86 12 56
यह नंबर अपने व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ें।
ईमेल: obcparty@gmail.com

लेखन तिथि: 4 सितंबर 2025

(लेखक ओबीसी विषय के अध्यनकर्ता है और ओबीसी पॉलिटिकल फ्रंट के संस्थापक-अध्यक्ष है)

सूचना- 1) जरांगे फॅक्टर पर पहला आर्टिकल ‘बहुजन सौरभ’ डेली न्युज पेपरने 9 सितंबर 2025 को पब्लिश किया है।
2) जरांगे फॅक्टर लेखमाला
पहिले आर्टिकल की हिन्दी pdf लिंक-
https://drive.google.com/file/d/1rKvd48JtccCu3eI-7elK8s1ItlsODeFQ/view?usp=drivesdk
3) पहिल्या लेखाची मराठी pdf लिंक पुढीलप्रमाणे
https://drive.google.com/file/d/1vVs0sLrOQ–t3gqVZYRO_dsaRVANPI2i/view?usp=drivesdk

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