दोस्ती कोई… लफ़्ज़ नहीं…! एक ख़ामोश एहसास है ये… जहाँ बातें ख़त्म होती हैं, और… समझना शुरू होता है!
वो मुस्कान में छिपा आँसू है, और आँसुओं में छिपी मुस्कान भी…! वो कुछ अनकहा सा जज़्बा है, जो… दिल से दिल तक सफ़र करता है। ज़माना बदले… मौसम बदले… पर ये रिश्ता नहीं बदलता, कभी नहीं!
दोस्ती मतलब… “अगर कभी पुकारो… तो मैं हूँ!” ये वो यक़ीन है, जो कहा नहीं जाता, बस… निभाया जाता है।
रात कितनी भी अँधेरी हो जाए… वो दिल में दीया जलाती है, ख़ामोशी से…! कभी रूठती है, कभी हँसती है, कभी दूर जाती है, मगर… भूलती नहीं!
वो दुआ है… जो हर साँस में बसती है, जिसे कायनात भी सुनती है, बिना आवाज़ के!
दोस्ती कोई सौदा नहीं… ना किसी उम्मीद की चाह है! ये तो बस… देना है, और… देते जाना है!
जहाँ “होना” ही इसका असली मतलब है… होना… सिर्फ़ होना!
इसलिए, जो दोस्त… ज़िन्दगी में एक बार भी तुम्हें सच्चे दिल से… हँसा दे…! वो पूरी ज़िन्दगी… दिल में ज़िन्दा रहता है!
क्योंकि… दोस्ती… कभी मरती नहीं… वो बस रूप बदल लेती है… और कायनात का हिस्सा बन जाती है…!!